आत्महित

आत्महित के लिये प्रमाद यानि बहाने छोड़ने होंगे।
कोई भी सांसारिक सम्बंध, आत्महित से बढ़कर नहीं होता।
पकड़ दोनों हाथों के टाइट रहने से बनी रहती है, एक हाथ ढीला होते ही पकड़ ढीली हो जाती है।
सम्बंध में एक यदि आत्महित की ओर मुड़ जाये तो दूसरा उसे पकड़ के नहीं रख सकता।
10 दिन तीर्थ या गुरु के पास जाकर देखो, अपेक्षायें ढीली पड़ जायेंगी।

श्री ज्ञानार्णव – सर्ग 1/46 (मुनि श्री प्रणम्यसागर जी)

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One Response

  1. आत्मा, ज्ञान दर्शन सुख आदि गुणों में वर्तता है, अपने आत्म हित का हमेशा ध्यान रखना परम आवश्यक है। उपरोक्त कथन सत्य है कि लोग अपनी आत्मा हित की जगह संसारिक इच्छाओं में लग जाते हैं, आत्म हित में प़माद यानी बहाने ढूंढने लगते हैं। अतः जीवन में संसारिक हित के साथ के साथ आत्म हित को पकड़ कर रखना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।

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