आत्मा तो अरूपी/अमूर्तिक/सूक्ष्म है, फिर मन कैसे जान लेता है ?
जिन छोटी वस्तुओं को आँख नहीं देख पाती, उन्हें चश्में से देख सकते हैं ।
ऐसे ही मन, आज्ञाविचय के चश्में से आत्मा को जान सकता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जो यथासंभव ज्ञान, सुख आदि गुणों से वर्तता या परिणमन करता है वही आत्मा होती है।
मन का मतलब नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि आत्मा अरुपी अमूर्तिक और सूक्ष्म है, फिर मन कैसे जान लेता है, इसका कारण है कि जिन छोटी वस्तुओं को आंख नहीं देख पाती है उन्हें चश्मे देखते हैं।ऐसे ही मन के चश्मे से आत्मा के ज्ञान को जान सकते हैं।
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जो यथासंभव ज्ञान, सुख आदि गुणों से वर्तता या परिणमन करता है वही आत्मा होती है।
मन का मतलब नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि आत्मा अरुपी अमूर्तिक और सूक्ष्म है, फिर मन कैसे जान लेता है, इसका कारण है कि जिन छोटी वस्तुओं को आंख नहीं देख पाती है उन्हें चश्मे देखते हैं।ऐसे ही मन के चश्मे से आत्मा के ज्ञान को जान सकते हैं।