आहार दान…
औषधि दान है – क्षुधा रोग निवारण की अपेक्षा,
वैयावृत्ति है – सुपात्र के रत्नत्रय में सहायक की अपेक्षा ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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वैयावृत्ति—गुणीजनो के ऊपर दुख आ पड़ने पर उसके निवारणार्थ जो सेवा सुश्रुषा की जाती है वह वैयावृत्ति नाम का तप है।आचार्य, उपाध्याय, साधुऔं आदि के लिए विपत्ति आने पर वैयावृत्ति करना चाहिए।रोगादि से व्याकुल साथु को आहार, औषध देना ओर उनके अनुकूल वातावरण बना देना ही वैयावृत्ति ही कहलाता है।अतः आहार दान और औषधि दान ही सुपात्र के रत्नत्रय में सहायक की अपेक्षा ही सही वैयावृत्ति होती है।
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वैयावृत्ति—गुणीजनो के ऊपर दुख आ पड़ने पर उसके निवारणार्थ जो सेवा सुश्रुषा की जाती है वह वैयावृत्ति नाम का तप है।आचार्य, उपाध्याय, साधुऔं आदि के लिए विपत्ति आने पर वैयावृत्ति करना चाहिए।रोगादि से व्याकुल साथु को आहार, औषध देना ओर उनके अनुकूल वातावरण बना देना ही वैयावृत्ति ही कहलाता है।अतः आहार दान और औषधि दान ही सुपात्र के रत्नत्रय में सहायक की अपेक्षा ही सही वैयावृत्ति होती है।