उत्तम आकिंचन्य
- पैदा होते समय हर व्यक्ति दिगम्बर ही होता है,
- बाद में वह पीताम्बर, नीलाम्बर आदि बन जाता है,
मरते समय भी दिगम्बर ही जाता है,
क्या इस भाव से आकिंचन्य की भावना हमारे जीवन में नहीं आ सकती?
- कोई ट्रेन में जा रहा हो, तो क्या वह अकेला होगा?
शुरु में अपरचित होने की अपेच्छा हां, पर बाद में परिचय होने पर सब अपने लगने लगते हैं,
पर उनके स्टेशन आने पर , वे उतरते चले जाते हैं,
उनसे प्रगाढ़ता कर दुखी होना बुद्धिमानी है क्या?
हम अपने जीवन में प्रगाढ़ता क्यों करें?
- नानक जी एक बार सामान तोल कर दे रहे थे ।
जब गिनते-गिनते 13 आया तो उनको लगा मेरा क्या है? सब तेरा ही है और उन्होंने सब माल दे दिया,
उत्तम आकिंचन्य धर्म भी तेरस की तिथी को ही आता है,
महावीर भगवान ने भी योग-निरोध (मोक्ष की आखरी प्रकिया) तेरस को ही शुरु किया था ।
- बच्चे कपड़े बदलते समय बहुत रोते हैं,
क्या हम उतने ही नादान हैं, कि शरीर रुपी कपड़े बदलते समय रोयें?
- ऊंचाई पर जाने के लिये भार तो कम करना ही होगा,
आकिंचन्य धर्म भार से निरभार की, सीमा से असीम की यात्रा है ।
मुनि श्री सौरभसागर जी