उत्तम आकिंचन्य धर्म
मैं किसी के पास नहीं जाउंगा/किसी का कुछ लेने के भाव नहीं रखूंगा/अपने में भी ममत्व नहीं ।
मैं आकिंचन्य हूँ ।
ये भाव ही आकिंचन्य-धर्म है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मैं किसी के पास नहीं जाउंगा/किसी का कुछ लेने के भाव नहीं रखूंगा/अपने में भी ममत्व नहीं ।
मैं आकिंचन्य हूँ ।
ये भाव ही आकिंचन्य-धर्म है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि मैं आंकिचन्य हूं,यह भाव ही उत्तम आंकिचन्य धर्म है।