उत्तम त्याग धर्म
त्याग सर्वस्य का (दान अंश का)
4 बातें …
1) कमाना ..जरूरतों/ ज़रूरतमंदों के लिए ।
न्याय और अहिंसक तरीकों से ।
जब तक स्वास्थ व परिवार-प्रेम बना रहे पर धर्म न छूटे ।
2) गंवाना..पुण्य के उदय से कमाये धन को भोगों/शान में गंवाना
3) बचाना ..अपने/ अपनों/ दया धर्म के लिए ।
4) लगाना ..60% अपने व परिवार पर, 30% भविष्य के लिए, 10% दान (कम से कम)
धन…
1) भाग्य ..धनवान घर में पैदा हुए ।
2) पुण्य ..नैतिकता से कमाया या पुण्य में लगाया ।
3) पाप ..पाप से कमाया या पाप में लगाया ।
4) अभिशप्त ..न पुण्य में लगाया, न पाप में; बस बचाया ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि त्याग यानी सर्वस्य का होता है जबकि श्रावकों के लिए कुछ अंश दान।इस विषय चार बिंदु बताएं गये है कि 1कमाना ज़रुरतों और जरूरतमंदों के लिए,वह भी नेतिकता और अहिंसक तरीके से। यह जब तक स्वास्थ्य और परिवार में प़ेम बना रहे,पर धर्म नहीं छूटना चाहिए।2 गंवाना इसके लिए पुण्य के उदय से कमाये लेकिन धन को भोगों और शान में बर्बाद नहीं करना चाहिए।3 बचाना यानी अपने, अपनों और दया धर्म के लिए होना चाहिए।4 लगाना यानी 60प़तिशत अपने और परिवार पर एवं 30प़तिशत भविष्य के लिए और 10प़तिशत कमसे कम दान देना आवश्यक है।धन के चार भाग है। भाग्य यानी धनवान के घर पैदा हुआ। पुण्य यानी नेतिकता से कमाया और पुण्य में लगाया।पाप से कमाया पाप में लगाया।4 अभिशप्त यानी न पुण्य में,न पाप में लगाया बस बचाया।यह जीवन की सबसे दयनीय स्थिति होती है।