उत्तम त्याग

  • कोई और छुड़ाये उससे पहले खुद छोड़ना त्याग है, न छोड़ना मौत (न छोड़ने पर मौत तो सब कुछ छुड़ा ही लेगी)
  • घर वाले निकालें, उससे पहले खुद ही क्यों न घर छोड़ दें (मौत या सन्यास)
  • पहले अचेतन से संबंध खत्म करें, अपने चेतन से खुद ही जुड़ जायेंगे ।
  • दान-अच्छी वस्तुओं का होता है जैसे-वैभव आदि, त्याग बुरी वस्तुओं का जैसे-राग, विकार आदि।
  • दान में देने और लेने वाले होते हैं, त्याग में सिर्फ़ देने वाला।
  • हमारे नित्यप्रति के पाप कर्मो का ब्याज दान से समाप्त होता है और मूल त्याग से।
  • दान/त्याग तीन प्रकार:-
    (१) राजसिक-अपनी वकत बढ़ाने के लिए।
    (२) तामसिक – बदला लेने की भावना से जैसे-रावण ने किया था।
    (३) सात्त्विक – राग से विराग की यात्रा।
  • सांस लेने से पहले सांस छोड़ना जरुरी होता है, याने त्याग हमारा स्वभाव है।
  • भगवान की मूर्ति भी शिला में से पत्थर छुड़ा-छुड़ा कर बनती है, जोड़ने से नहीं।
  • छोड़ना बाह्य प्रकिया है, त्याग आंतरिक।

मुनि श्री सौरभसागर जी

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