मार्दव धर्म
“म” से मान का
“द” से दमन,
“व” से विनम्रता द्वारा ।
2) मार्दव धर्म का प्रारम्भ होगा…
भगवान के सम्मान / गुणगान से,
फिर गुरु / शास्त्र तथा माता पिता के से,
इनके प्रति कृतज्ञता का भाव बनाये रखने से ।
और अंत में छोटों को सम्मान देने से ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
3) मान त्रिकोणा घेरा है जो तीनों से मिलने नहीं देता…
* भगवान से
* संसार से
* अपने आप से भी ।
4) आसमां पे ठिकाने किसी के नहीं होते,
जो जमीं के नहीं होते वो कहीं के नहीं होते..
5) झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं …
बाज़ की उड़ान में कभी आवाज़ नहीं होती ।
One Response
Suresh chandra jain
Every body wants samman, for this you have to become accha aadmi; you will receive good samman.