उत्तम शौच
- लोभ का उल्टा, जो जीवन को पवित्र करे ।
- पवित्रता दो प्रकार की है –
1. शारीरिक – जो तपस्या से आती है ।
2. भावों की – जो गृहस्थों में संतोष तथा न्याय की कमाई से आती है ।
साधुओं में आत्मचिंतन से आती है ।
- पहली तीन कषाय (क्रोध, मान, माया) पाप रूप ही होती हैं,
पर लोभ पुण्य रूप भी होता है जैसे – धार्मिक क्रियायें आदि ।
- लोभ के प्रकार –
1. धन का – हिंसा से कमाना ।
2. शरीर का – अभक्ष्य चीजों का प्रयोग ।
महात्मा गांधी जी का बेटा बहुत बीमार हो गया तो उसे अभक्ष्य खाने को बोला गया, ना बेटा तैयार हुआ और ना गांधी जी ।
3. यश का – दान की पटिया लगवाना आदि ।
4. विषय भोगों का – हिंसात्मक चीजों का प्रयोग ।
- लोभ कैसे छोड़ें ?
1. संतोष और आत्मचिंतन से ।
2. कर्म सिद्धांत पर विश्वास रखें – जो आज मिल रहा है वो हमारे पुराने पुण्यों से है, यदि बेईमानी से कमायेंगे तो पुण्य क्षय होंगे ।
3. दूसरों की समृद्धि को ना देखें ।
- लोभ से हानि –
1. लोभ में आदमी अंधा हो जाता है, गंदे से गंदे काम करने को तैयार रहता है ।
2. हर समय संकल्प विकल्प रहते हैं ।
3. सब लोग गिरी हुई दृष्टि से देखते हैं ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी – पाठ्शाला (पारस चैनल)
- चारौं कषाय Iceberg की तरह हैं ।
1. क्रोध – Iceberg का ऊपरी भाग दिखता है, चुभता है और नुकीला होता है ।
2. मान – ऊपर से नीचे का भाग, क्रोध से बड़ा, दिखता है ।
3. मायाचारी – पानी की सतह से नीचे का भाग, दिखता नहीं है, मान से बड़ा ।
4. लोभ – सबसे नीचे का भाग, सबसे बड़ा, दिखता नहीं है, तीनों कषाय के बाद में स्वभाव से अलग होता है ।
क्रोध तथा मान तो थोड़े से भाग हैं दिखते हैं सो वे ज़्यादा ख़तरनाक नहीं है ।
पर माया और लोभ छुपे रहते हैं, size भी बहुत बड़ा, बड़े बड़े जहाजों को ड़ूबा देते हैं ।
चिंतन
One Response
Thanks for such a detailed description.
Jaijinendra.