उपशम / उपशमन

उपशमन अंतर्मुहूर्त के लिये,
उपशम (सदवस्था रूप) – 66 सागर तक ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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4 Responses

  1. आत्मा में कर्म की निज शक्ति का कारणवश प़कट न होना, उपशम कहलाता है। जैसे जल में फिटकरी डालने पर मैल नीचे बैठ जाता है और जल निर्मल हो जाता है इसी प्रकार कर्म के उपशम से अन्तर्मुर्हूत के लिए जीव के परिणाम अत्यंत निर्मल हो जाते हैं । यह मोहनीय कर्म में होती है।
    अतः यह कथन सत्य है कि उपशम यानी सदवस्था रुप 66 सागर तक होती है लेकिन उपशमन अंतर्मुहूर्त के लिए होती है।

    1. क्षयोपशम स.दर्शन में 66 सागर तक आगामी काल में उदय होने वाली 6 प्रकृतियों का सदवस्था रूप उपशम होता है ।
      यानि उसी रूप उपशम होता है ।

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