कुल 64 ऋद्धियाँ तो एक साथ हो ही नहीं सकतीं जैसे सर्वावधि होगी तो परमावधि नहीं होगी ।
केवलज्ञान होगा तो बाकी 63 नहीं होंगी ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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केवलज्ञान—जो सकल चराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है। वह चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि कुल 64 रिद्वियाँ एक साथ हो नहीं सकती हैं जैसे सर्वावधि होगी तो परमावधि नहीं होगी। अतः जब केवलज्ञान होगा तो बाकी 63 रिद्वियां नहीं होगी।
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केवलज्ञान—जो सकल चराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है। वह चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि कुल 64 रिद्वियाँ एक साथ हो नहीं सकती हैं जैसे सर्वावधि होगी तो परमावधि नहीं होगी। अतः जब केवलज्ञान होगा तो बाकी 63 रिद्वियां नहीं होगी।