श्रावक एकेंद्रिय जीवों की रक्षा, अनर्थदंड-विरति व्रत से ही कर सकते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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एकइन्द़िय जीवन जिसके एक मात्र स्पर्शन है, जैसे वनस्पति, वायु आदि सभी जीव एकइन्द़िय होते हैं।
अनर्थदंड का मतलब जीवों के द्वारा मन वचन काय से होने वाली ऐसी क़िया या प़वृति जो उपकार न होकर मात्र पाप अर्जन होता है।
व़त का मतलब पापों से निवृत्ति के लिए प़तिज्ञा पूर्वक नियम लिया जाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रावक को एकइन्द़िय जीवों की रक्षा करना आवश्यक है, यदि नहीं कर पाता है तो अनर्थदंड विरित व़त से पूरा करना परम आवश्यक है।
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एकइन्द़िय जीवन जिसके एक मात्र स्पर्शन है, जैसे वनस्पति, वायु आदि सभी जीव एकइन्द़िय होते हैं।
अनर्थदंड का मतलब जीवों के द्वारा मन वचन काय से होने वाली ऐसी क़िया या प़वृति जो उपकार न होकर मात्र पाप अर्जन होता है।
व़त का मतलब पापों से निवृत्ति के लिए प़तिज्ञा पूर्वक नियम लिया जाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रावक को एकइन्द़िय जीवों की रक्षा करना आवश्यक है, यदि नहीं कर पाता है तो अनर्थदंड विरित व़त से पूरा करना परम आवश्यक है।