करण और भाव
तीन करण…
मिथ्यादृष्टि के भी होते हैं जब वह सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा होता है। तब औदयिक भाव होते हैं।
श्रेणी मांडते समय आदि पाँच अवसरों पर क्षयोपशमिक-भाव।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
तीन करण…
मिथ्यादृष्टि के भी होते हैं जब वह सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा होता है। तब औदयिक भाव होते हैं।
श्रेणी मांडते समय आदि पाँच अवसरों पर क्षयोपशमिक-भाव।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने करण एवं भाव को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।