करुणा
करुणा के भेद …
1. “करने वाली” – दूसरों के निमित्त से/दूसरों के लिये ।
पर निमित्त कितनी देर को मिलेंगे ?
सो करुणा भाव पराश्रित और अल्पसमय के लिये आयेंगे ।
2. “धारण करने वाली” – निरपेक्ष ।
लम्बे समय/हमेशा के लिये, मन वचन काय में, मुख्यत: अपने लिये ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
4 Responses
जैन धर्म में करुणा यानी दया के भाव का मूल सिद्धांत है। अतः उक्त कथन सत्य है कि करुणा के दो भेद हैं,करने वाले अथवा धारण करने वाले होते है। करने वाले दूसरों के निमित्त से, दूसरों के लिए होती है,यह निमित्त अल्प समय के लिए होता है। जबकि धारण करने वाले के लिए हमेशा लम्बे समय के लिए मन वचन काय में मुख्यता अपने लिए होती है।
अतः निमित्त के भरोसे नहीं बल्कि उसको धारण करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
“निरपेक्ष” ka meaning kya “Independent” hai?
Independent भी,
और बिना निमित्त/ अपेक्षा के भी ।
Okay.