कर्मोदय
कर्म उदय से पहले मन में आता है । वही अच्छे/बुरे विचार बनाता है जैसे गला ख़राब होने से पहले खट्टी/ठंडी चीजें खाने का मन करने लगता है ।
बुरा समय आने से पहले धर्म बुरा लगने लगता है ।
पुरुषार्थ से यदि बुरे/ हानिकारक विचारों को दबा लिया तो प्रभाव कम/समाप्त हो जाता है, नहीं दबाया तो कर्म दबा लेता है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
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कर्म का तात्पर्य मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है,वह सब क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होते हैं या संसार में भटकता है। कर्मों के अनुसार ही फल अच्छा या बुरा मिलता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि बुरा समय आने के पहले धर्म बुरा लगने लगता है। पुरुषार्थ से बुरे या हानिकारक विचारों को दबा लिया तो प़भाव कम या समाप्त हो जाता है, यदि नहीं दबाया तो कर्म दबा लेता है। अतः अच्छे कर्मों में पुरुषार्थ करना आवश्यक है ताकि जीवन में उसका अच्छा परिणाम मिले ।