मूलाचार के अनुसार उत्कृष्ट कायोत्सर्ग 6 माह, जघन्य 9 णमोकार ।
अन्य आचार्य 12 माह मानते हैं, जो बाहुबली महाराज ने किया था ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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कायोत्सर्ग—शरीर से ममत्व छोड़कर आत्मध्यान में लीन होना कहलाता है। यह साधुओं का मूलगुण हैं। सत्ताईस श्वसोत्छवास का एक कायोत्सर्ग माना जाता है, इस अवधि में नौ बार णमोकार मंत्र का जाप किया जाता है।देव वन्दना, गुरु भक्ति,स्वाध्याय आदि के अवसर पर कायोत्सर्ग करना चाहिए। मूलाचार के अनुसार उत्कृष्ट कायोत्सर्ग छह माह और जघन्य नो णमोकार होता हैं जबकि कुछ आचार्य बारह माह मानते हैं जिसको बाहुबली महाराज ने किया था।
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कायोत्सर्ग—शरीर से ममत्व छोड़कर आत्मध्यान में लीन होना कहलाता है। यह साधुओं का मूलगुण हैं। सत्ताईस श्वसोत्छवास का एक कायोत्सर्ग माना जाता है, इस अवधि में नौ बार णमोकार मंत्र का जाप किया जाता है।देव वन्दना, गुरु भक्ति,स्वाध्याय आदि के अवसर पर कायोत्सर्ग करना चाहिए। मूलाचार के अनुसार उत्कृष्ट कायोत्सर्ग छह माह और जघन्य नो णमोकार होता हैं जबकि कुछ आचार्य बारह माह मानते हैं जिसको बाहुबली महाराज ने किया था।