विशुद्धि बढ़ने से क्षयोपशम बढ़ता है,
संक्लेश भावों/ दु:खी रहने से क्षयोपशम घटता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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विशुद्वि का मतलब साता वेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम,अथवा कषाय की मंदता का नाम है।
संक्लेश का मतलब वेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम को कहते हैं, इसमें तीव़ कषाय होती है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि विशुद्वि बढ़ने से क्षयोपशम बढ़ता है, जबकि संक्लेश भावों एवं दुखी रहने से क्षपोपशम घटता है।
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विशुद्वि का मतलब साता वेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम,अथवा कषाय की मंदता का नाम है।
संक्लेश का मतलब वेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम को कहते हैं, इसमें तीव़ कषाय होती है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि विशुद्वि बढ़ने से क्षयोपशम बढ़ता है, जबकि संक्लेश भावों एवं दुखी रहने से क्षपोपशम घटता है।