जिनसे पहचान हो, उसे गुण कहते हैं ।
जैसे मुनियों की पहचान 28 मूलगुणों से,
श्रावक की प्रशम (विपरीत परिस्थितियों में उद्वेलित ना होना),
मिथ्यादॄष्टि रोटी मांगता है, सम्यग्दॄष्टि क्षुधा रोग की समाप्ति ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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गुण का मतलब जो एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है। गुण सदा द़व्य के आश्रित रहते हैं अर्थात् द़व्य की प़त्येक अवस्था में उनके साथ रहते हैं।प़त्येक द़व्य में अनेक गुण होते हैं, जिसमें कुछ साधारण या सामान्य, लेकिन कुछ असाधारण या विशेष गुण होते हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि जिनसे पहचान हो,उसे गुण कहते हैं। जैसे मुनियों की पहचान 28 मूलगुणों से होती है, जबकि श्रावक की प़शम यानी विपरीत परिस्थितियों में उद्वेलित न होना। इसके अलावा मिथ्यादृष्टि रोटी मांगता है, जबकि सम्यग्दृष्टि क्षुधा रोग की समाप्ति।
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गुण का मतलब जो एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है। गुण सदा द़व्य के आश्रित रहते हैं अर्थात् द़व्य की प़त्येक अवस्था में उनके साथ रहते हैं।प़त्येक द़व्य में अनेक गुण होते हैं, जिसमें कुछ साधारण या सामान्य, लेकिन कुछ असाधारण या विशेष गुण होते हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि जिनसे पहचान हो,उसे गुण कहते हैं। जैसे मुनियों की पहचान 28 मूलगुणों से होती है, जबकि श्रावक की प़शम यानी विपरीत परिस्थितियों में उद्वेलित न होना। इसके अलावा मिथ्यादृष्टि रोटी मांगता है, जबकि सम्यग्दृष्टि क्षुधा रोग की समाप्ति।