आचार्य श्री ज्ञानसागर जी (आ. श्री विद्यासागर जी के गुरु) कहा करते थे – 2 रु. की हाँड़ी लेने से पहले ठोंक-बजा कर लेते हो,
गुरु को भी खोजें, पहचानें, पायें तब उनके हों ।
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गुरु शब्द का अर्थ महान् है। लोक में अध्यापक, माता-पिता को कहते हैं। जबकि मोक्ष मार्ग में आचार्य, उपाध्याय और साधु यह तीन गुरु है जो शिष्यों को जिन दीक्षा,वैराग्य का मार्ग और प्रायश्चित आदि देते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी, आचार्य श्री विद्यासागर जी के गुरु थे लेकिन उनको बताते थे कि 2 रुपए की हांडी लेने से पहले ठोंक बजाकर लेना आवश्यक है। अतः गुरु को भी खोजें,पहिचाने तभी उनको गुरु मिल सकते हैं।
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गुरु शब्द का अर्थ महान् है। लोक में अध्यापक, माता-पिता को कहते हैं। जबकि मोक्ष मार्ग में आचार्य, उपाध्याय और साधु यह तीन गुरु है जो शिष्यों को जिन दीक्षा,वैराग्य का मार्ग और प्रायश्चित आदि देते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी, आचार्य श्री विद्यासागर जी के गुरु थे लेकिन उनको बताते थे कि 2 रुपए की हांडी लेने से पहले ठोंक बजाकर लेना आवश्यक है। अतः गुरु को भी खोजें,पहिचाने तभी उनको गुरु मिल सकते हैं।