गुरु
शिथलाचारी साधु भी हमसे तो अच्छे हैं । हम अपने माता-पिता के भी तो पैर छूते हैं !
माता-पिता को उनके स्वरूप के अनुसार पैर छूते हैं ।
शिथलाचार उनका स्वभाव/स्वरूप नहीं, विकृत रूप है ।
क्या इसलिये पूजा जा रहा है कि वे हमसे बड़े मायाचारी हैं !
या इसलिये क्योंकि दुनियाँ उन्हें पूज रही है !!
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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गुरु शब्द का अर्थ महान है,लोक में अध्यापक एवं माता-पिता को कहते हैं, लेकिन मोक्ष मार्ग में आचार्य, उपाध्याय और साधु को कहते हैं। मायाचारी का मतलब तो छल कपट या कुटिलता का भाव है।
अतः माता-पिता को उनके स्वरुप के अनुसार पैर छूते हैं,मुनि का शिथलाचार उनका स्वभाव या स्वरुप नहीं वह विकृत रुप है,उनकी पूजा नहीं करते हैं, शिथिलाचर के कारण कारण पूजा के योग्य नहीं माना जाता है।