गुरूजन
एक चोर को सेठ ने रात को चोरी करते हुये देख लिया ।
अगले दिन एक दावत में सेठ पंगत में बैठा, पास में ही वह चोर भी बैठा था । सेठ को शक हो गया ।
सेठ बार बार पूछता था – क्या रात को तू ही था ?
चोर सिर हिला कर मना करता रहा ।
मिष्ठान/पकवान परोसने वाले समझते कि इसे मिष्ठान/पकवान नहीं चाहिये और वे बिना परोसे आगे बढ़ते जाते ।
हम भी पूर्व के चोर हैं, मना करते रहते हैं और गुरूजन हितोपदेश ( मिष्ठान/पकवान ) बिना दिये आगे बढ़ जाते हैं ।