कषायों के विचार रूप विषयों को भोगने की इच्छा का नाम चारित्र-मोहनीय है ।
मुनि श्री अमितसागर जी
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कषाय का तात्पर्य आत्मा में होने वाली क़ोधदि रुप कलुषता होती है,यह चार प्रकार की होती है क़ोध मान माया और लोभ।मोहनीय कर्म का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से हित अहित का विवेक नहीं रहता है। इसमें दो कर्म होते हैं, दर्शन और मोहनीय कर्म।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कषायों के विचार रुप विषयों को भोगने की इच्छा का नाम चारित्र मोहनीय होता है।
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कषाय का तात्पर्य आत्मा में होने वाली क़ोधदि रुप कलुषता होती है,यह चार प्रकार की होती है क़ोध मान माया और लोभ।मोहनीय कर्म का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से हित अहित का विवेक नहीं रहता है। इसमें दो कर्म होते हैं, दर्शन और मोहनीय कर्म।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कषायों के विचार रुप विषयों को भोगने की इच्छा का नाम चारित्र मोहनीय होता है।
Can meaning of the post be explained, please?
remarks….
कषायों के विचार मात्र से विषयों के भावों का भी आना चारित्र-मोहनीय है।
Okay.