जीवन में हर प्राणी को, निर्वाह की आवश्यकता होती है। जब निर्वाह हो रहा है, तब उसको जीवन का उद्देश्य निर्धारित करना चाहिए; तभी निर्माण हो सकेगा। यदि मनुष्य, जीवन का उद्देश्य, “मोक्ष मार्ग के रास्ते को अपनाना”, बनाता है, निर्वाण की प्राप्ति की पूर्ण संभावना होगी। निर्वाण आत्मा की परम विशुद्ध अवस्था का नाम है ।
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जीवन में हर प्राणी को, निर्वाह की आवश्यकता होती है। जब निर्वाह हो रहा है, तब उसको जीवन का उद्देश्य निर्धारित करना चाहिए; तभी निर्माण हो सकेगा। यदि मनुष्य, जीवन का उद्देश्य, “मोक्ष मार्ग के रास्ते को अपनाना”, बनाता है, निर्वाण की प्राप्ति की पूर्ण संभावना होगी। निर्वाण आत्मा की परम विशुद्ध अवस्था का नाम है ।