णमोकार/भक्तामर
णमोकार को पवित्र/अपवित्र किसी भी स्थान पर ध्याया जा सकता है तो भक्तामर को क्यों नहीं ?
वैसे तो भक्तामर भक्त की वाणी है, पर उसमें बीजाक्षरों का प्रयोग किया गया है जो भगवान की वाणी है, जो बहुत Powerful है ।
इसलिये उनको ध्याने के लिये पवित्र स्थानादि जरूरी है ।
(भक्तामर विधान में बीजाक्षर – पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी)
मुनि श्री सुधासागर जी
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उक्त कथन सत्य है कि णमोकार मंत्र अनादिकाल से चला आ रहा है, अतः इसको पवित्र और अपवित्र किसी भी स्थान पर ध्याया जा सकता है। लेकिन भक्तामर भक्त की वाणी है पर उसमें बीजाक्षरो का प़योग किया गया है,जो भगवान् की वाणी है और पावरफुल है। अतः इसके ध्याने के लिए पवित्र स्थान की आवश्यकता होती है। भक्तामर में बीजाक्षरो के उपयोग के कारण इसकी आराधना और विधान में ही स्तुति की जाती है।