तीसरी पर्याय जैसे H2 + O = जल
इसमें ना तो H2 दिखती है ना ही O, है तो फिर भी जल ।
ऐसे ही संसारी जीवों में न शुद्ध आत्मा के लक्षण हैं, ना पुदगल (कर्म से बने शरीर) के ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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पर्याय का मतलब अवस्था विशेष को कहते हैं। पर्याय एक के बाद दूसरी,इसी प्रकार क़मशः होती है। पर्याय दो प्रकार की होती है,अर्थ-पर्याय और व्यंजन-पर्याय,यह स्वभाव/ विभाव रुप होती हैं। उपरोक्त कथन सत्य है आत्मा+कर्म बराबर नया रुप एवं अर्थांतर। तीसरी पर्याय यानी H2+o =जल, इसमें न तो H2 दिखती है,न ही o , यह तो फिर भी जल है । ऐसे ही संसारी जीवों में न तो शुद्ध आत्मा के लक्षण हैं,ना ही पुदगल यानी कर्म से बने शरीर के।
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पर्याय का मतलब अवस्था विशेष को कहते हैं। पर्याय एक के बाद दूसरी,इसी प्रकार क़मशः होती है। पर्याय दो प्रकार की होती है,अर्थ-पर्याय और व्यंजन-पर्याय,यह स्वभाव/ विभाव रुप होती हैं। उपरोक्त कथन सत्य है आत्मा+कर्म बराबर नया रुप एवं अर्थांतर। तीसरी पर्याय यानी H2+o =जल, इसमें न तो H2 दिखती है,न ही o , यह तो फिर भी जल है । ऐसे ही संसारी जीवों में न तो शुद्ध आत्मा के लक्षण हैं,ना ही पुदगल यानी कर्म से बने शरीर के।