दु:ख/सुख
दु:ख छोड़ना आसान है,
सुख छोड़ना कठिन ।
ठंड़ से घबराकर कमरे में आना आसान,
ठंड़ में कमरे से बाहर जाना कठिन ।
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी
दु:ख छोड़ना आसान है,
सुख छोड़ना कठिन ।
ठंड़ से घबराकर कमरे में आना आसान,
ठंड़ में कमरे से बाहर जाना कठिन ।
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी
3 Responses
Jai Jinendra,
Ek din Bhagwan se punchha…
Nadi mein itna paani kahan se aata hai ?
Saagar mein mil ke nadi ka paani bhi Khaara kyu ho jaata hai ?
Ye Suraj kya kabhi thakta nhi hai ?
Ped bina patton ke bhi kyu khate rehte hain ?
Baarish mein ghonsla girne ke baad bhi panchhi naya ghonsla kyu banaate hai ?
Phool use todne waale ko bhi khushboo kyu deta hai ?
Sab kuch jaanne ke baad bhi insaan kuch bhi samajh kyu nhi paata
………………..
?????????????
In sawaalo ke jawaab abhi tak mile nhi kahin aisa to nhi ki,
inhe khaarij kar diya gayaa ho??????
The Above Poem is dedicated to Muni Shri Kshamasagar ji
Jaise sarir or atma ki baate sunnaa, per aplication nahi karna.
एक उड़ते पखेरू ने मुझसे निरंतर उड़ते रहने को कहा,
एक पेड़ ने तूफानों के बीच अडिग खड़े रहने को कहा,
और एक नदी मुझसे निरंतर बहते रहने को कह गई |
सूरज ने सुबह आ कर मुझसे दिन भर रोशनी देते रहने को कहा,
चाँद सितारों ने रात भर अंधेरों से जूझने को कहा,
और एक नीली झील मुझसे बाहर भीतर एक सा निर्मल होने को कह गई,
सागर ने धीरे से लहराकर कहा सीमाओं में रहो,
आकाश ने अपने में सबको समाकर कहा – असीम हो जाओ,
और एक नन्ही बदली प्रेम से भरकर निरंतर बरसने को कह गई,
मेरी ज़िन्दगी इस तरह सबकी हो गई |
– पूज्य गुरूवर श्री क्षमासागर जी महाराज