दुनिया
हरिवंशराय बच्चन जी की एक ख़ूबसूरत कविता,
“रब” ने नवाज़ा हमें ज़िंदगी देकर,
और हम “शौहरत” माँगते रह गये ।
ज़िंदगी गुज़ार दी शौहरत के पीछे,
फिर जीने की “मोहलत” माँगते रह गये ।।
2) ये समुंदर भी दुनिया की तरह खुदगर्ज़ निकला,
ज़िंदा थे तो तैरने न दिया मर गए तो डूबने न दिया
3) जो सामने है उसे लोग बुरा कहते हैं,
जिसको देखा नहीं उसे सब “ख़ुदा” कहते हैं ।
(सुरेश)
One Response
Suresh chandra jain
Es kavita ka bhav bahut sunder hai; yadi aap jeevan me kuch karna chahte hain to sabse pehle aapko apna uddeshya banana hoga, tabhi us marg aer chalkar kamyabi pa sakenge; shohrat paane ke liye kuch karna hoga.