देवों की उत्पत्ति
मिथ्यादृष्टि देव, पृथ्वी, जल, वनस्पतिकायिक बादर पर्याप्तक में जन्म ले सकते हैं।
पर अग्नि, वायुकायिक में नहीं क्योंकि वहाँ के लिये बहुत संक्लेषित भाव होने चाहिए।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 527)
मिथ्यादृष्टि देव, पृथ्वी, जल, वनस्पतिकायिक बादर पर्याप्तक में जन्म ले सकते हैं।
पर अग्नि, वायुकायिक में नहीं क्योंकि वहाँ के लिये बहुत संक्लेषित भाव होने चाहिए।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 527)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने देवों की उत्पत्ति का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
‘अग्नि’ me to samajh me aata hai lekin ‘वायुकायिक’ के लिये ‘बहुत संक्लेषित भाव’ kyun चाहिए ?
ऐसा लगता है कि अग्नि तथा वायु बहुत विध्वंसक होते हैं। इनमें आने वाले जीव बहुत संक्लेषित भाव वाले होते होंगे।
Okay.