धन / धर्म

धन की रक्षा करनी पड़ती है,
धर्म हमारी रक्षा करता है ।

धन के लिए पाप करना पड़ता है,
धर्म में पाप का त्याग होता है ।

धन से धर्म नहीं आता,
धर्म से धन आता है ।

धन मित्रों को भी दुश्मन बना देता है,
धर्म दुश्मन को भी मित्र बना देता है ।

धन भय को उत्पन्न करता है,
धर्म भय को समाप्त करता है ।

धन रहते हुए व्यक्ति दुःखी है,
धर्म से व्यक्ति दुःख में भी सुखी है ।

धन से संकीर्णता आती है,
धर्म से विशालता ।

धन इच्छा को बढ़ाता है,
धर्म इच्छाओं को घटाता है ।

धन में लाभ-हानि चलती रहती है,
धर्म से फ़ायदा ही फ़ायदा ।

धन से कषाय बढ़ती है,
धर्म से कषाय शांत होती है ।

धन से रोग बढ़ता है,
धर्म से जीवन स्वस्थ बनता है ।

धन अशाश्वत है,
धर्म शाश्वत,परभव में भी साथ जाता है ।

(सुरेश)

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One Response

  1. Suresh chandra jain

    This is very true, dharm se judkar dhan kamana he sub kuch kar sakta hai, nahin to dhan akela kuch bhala nahi kar sakta.

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