साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते ! चाहे उनके पास कितनी भी मंत्रादि शक्तियाँ हों ।
क्योंकि उसमें दुशमन की हिंसा का दोष लगेगा/ उत्तम-अहिंसा व्रत का पालन नहीं हो पायेगा ।
इनकी रक्षा का दायित्व, श्रावकों पर होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है कि साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते हैं, चाहें उनके पास कितने भी मंत्रादि शक्तियों हों, क्योंकि उसमें दुशमन की भाव हिंसा का दोष लगेगा जिसके कारण उत्तम अहिंसा व़त का पालन नहीं हो पायेगा।
अतः साधुओं की रक्षा का उत्तरदायित्व श्रावकों का होता है।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है कि साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते हैं, चाहें उनके पास कितने भी मंत्रादि शक्तियों हों, क्योंकि उसमें दुशमन की भाव हिंसा का दोष लगेगा जिसके कारण उत्तम अहिंसा व़त का पालन नहीं हो पायेगा।
अतः साधुओं की रक्षा का उत्तरदायित्व श्रावकों का होता है।