धर्म / अधर्म
वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वस्तु अनादि से है, सो धर्म भी अनादि से हुआ।
लेकिन ये अधर्म कब और कहाँ से आ गया ?
अधर्म है ही नहीं। धर्म का अभाव ही अधर्म कहलाता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वस्तु अनादि से है, सो धर्म भी अनादि से हुआ।
लेकिन ये अधर्म कब और कहाँ से आ गया ?
अधर्म है ही नहीं। धर्म का अभाव ही अधर्म कहलाता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने धर्म एवं अधर्म को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अधर्म से बचना परम आवश्यक है ताकि जीवन में धर्म का वातावरण रह सकता है।