धर्म में संतोष

धर्म-यात्रा में संतोष नहीं करना, वरना प्रगति रुक जायेगी ।
पर असंतोष भी नहीं, वरना निरूत्साहित हो जाओगे/दु:खी होओगे, जिससे कर्मबंध होगा ।
जैसी स्थिति ऊंचे पहाड़ पर चढ़ते समय आधी चढ़ायी के बाद होती है ।

चिंतन

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4 Responses

  1. उक्त चिंतन पूर्ण सत्य है । अतः धर्म क्षेत्र में कोई भी कार्य करते हैं, उसमें सन्तोष नहीं करना है, क्योंकि प़गती रुक जावेगी। इसके साथ असन्तोष भी नहीं करना है, क्योंकि इसके कारण निरुत्साहित हो जाओगे,दुखी हो सकते हैं और कर्म बन्ध भी होगा। जो उदाहरण दिया गया है कि पहाड़ पर चढ़ने का वह पूर्ण सत्य है।

  2. “ऊंचे पहाड़ पर चढ़ते समय, आधी चढ़ायी के बाद” “Santosh” hota hai ya “Asantosh”?

    1. नीचे देखोगे तो संतोष, ऊपर देखने से असंतोष हो सकता है ।
      संसार में भी यही लगता है …अपने से ऊपर वालों पर दृष्टि तो प्रेरणा तो कम लेते हैं, असंतोष ज्यादा ।

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