धर्म-पुरूषार्थ

शुभ सरस्वती है तथा लाभ लक्ष्मी है ।
पर हम सब लाभ ही लाभ के पीछे लगे रहते हैं ।
शुभ बढ़ा लो ( अपने पुरूषार्थ को धर्म में लगाकर ) और लाभ कम कर लो ( दान से ) तो जीवन में शुभ के साथ लाभ भी ज्यादा हो जायेगा ।
जैसे पंगत में मना करने पर और-और मिलता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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3 Responses

  1. Mera manna ye hai ke Manushye ko sabse pahle manushye ki seva karni chaheye aur ek doosre ke kaam aana chahiye ye he hamara sabse bada Dharm he.

    1. सोच अच्छा है, पर शास्त्रों में सेवा को सबसे बड़ा धर्म ना कहकर सबसे पहला धर्म कहा है, धर्म की Foundation कहा है । ऊपर के Item ‘धर्म’ में भी आप ऐसा ही पायेंगे – धर्म, पुरुषार्थ के साथ, दान करने को कहा है जो पर का उपकार भी करेगा ।

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