शरीर के निर्माण में नामकर्म-वर्गणायें खुद शरीर नहीं बनातीं,
वे शरीर निर्माण योग्य के योग्य वर्गणाओं को आकर्षित करतीं हैं, तब उनसे शरीर का निर्माण होता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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नामकर्म का मतलब जिस कर्म के उदय से जीव देव नारकी तिर्यंच या मनुष्य बनते हैं अथवा जो नाना प्रकार के शरीर की रचना होती हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि शरीर के निर्माण में नामकर्म वर्गणायें खुद शरीर नहीं बनातीं हैं, जबकि शरीर निर्माण के योग्य वर्गणाओं को आकर्षित करती हैं तब उनसे शरीर का निर्माण होता है।
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नामकर्म का मतलब जिस कर्म के उदय से जीव देव नारकी तिर्यंच या मनुष्य बनते हैं अथवा जो नाना प्रकार के शरीर की रचना होती हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि शरीर के निर्माण में नामकर्म वर्गणायें खुद शरीर नहीं बनातीं हैं, जबकि शरीर निर्माण के योग्य वर्गणाओं को आकर्षित करती हैं तब उनसे शरीर का निर्माण होता है।