इतर-निगोद जाने का कारण तो तीव्र पाप है,
पर नित्य-निगोद में जीव स्वभाववश रहता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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निगोद—-जो अनन्तों जीवों को एक निवास दे उसे कहते हैं।आशय यह है कि एक ही साधारण शरीर में जहां अनन्तों जीव निवास करते हैं यह निगोद कहलाता है।
निगोद के दो भेद होते हैं
1 इतर-निगोद
2 नित्य-निगोद।
इतर-निगोद में जाने का कारण तीव़ पाप होता है ,इसमे जिन्होने त्रस पर्याय पहिले पायी है और फिर निगोद में उत्पन्न हुए है, अतः ऐसे जीव इतर-निगोद कहलाते हैं।
नित्य-निगोद-जिन्होने कभी भी त्रस पर्याय को प़ाप्त नहीं किया और सदाकाल से निगोद में ही है, अतः वह जीव नित्य-निगोद कहलाते हैं।
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निगोद—-जो अनन्तों जीवों को एक निवास दे उसे कहते हैं।आशय यह है कि एक ही साधारण शरीर में जहां अनन्तों जीव निवास करते हैं यह निगोद कहलाता है।
निगोद के दो भेद होते हैं
1 इतर-निगोद
2 नित्य-निगोद।
इतर-निगोद में जाने का कारण तीव़ पाप होता है ,इसमे जिन्होने त्रस पर्याय पहिले पायी है और फिर निगोद में उत्पन्न हुए है, अतः ऐसे जीव इतर-निगोद कहलाते हैं।
नित्य-निगोद-जिन्होने कभी भी त्रस पर्याय को प़ाप्त नहीं किया और सदाकाल से निगोद में ही है, अतः वह जीव नित्य-निगोद कहलाते हैं।