नियतिवाद
नियतिवाद को जैन दर्शन नहीं स्वीकारता।
पूरा पुरुषार्थ करने के बाद जो भी फल आया, उसे नियति मान कर स्वीकारता है।
क्षपक श्रेणी में सब Automatic, पर दुर्भाग्य आज पहले गुणस्थान से ही सब Automatic Mode पर आ रहे हैं/ नियतिवाद पर जा रहे हैं/ पुरुषार्थ के महत्त्व को भुला रहे हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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नियतिवाद का मतलब एकान्त मिथ्यात्व है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जैन सिद्धांत नियतिवाद को स्वीकारता नहीं है।जैन दर्शन अनेकान्तवाद को स्वीकार करता है। अतः जीवन में निश्चय धर्म के साथ व्यवहार धर्म को मानना आवश्यक है ताकि जीवन में जैन दर्शन का अनुभव हो सकता है। व्यवहार धर्म से मतलब जीवन में पुरुषार्थ करना होता है।