नियति
बचपन में नियति वह सब देती है, जिसकी ज़रूरत होती है।
वृद्धावस्था में वह सब वापस लेती जाती है, जिस-जिस की ज़रूरत नहीं होती – पैरों की ताकत, दूर क्यों जाना !
इन्द्रियों की शक्त्ति, ताकझांक क्यों करना ! अपने में रहो।
(सुमन)
बचपन में नियति वह सब देती है, जिसकी ज़रूरत होती है।
वृद्धावस्था में वह सब वापस लेती जाती है, जिस-जिस की ज़रूरत नहीं होती – पैरों की ताकत, दूर क्यों जाना !
इन्द्रियों की शक्त्ति, ताकझांक क्यों करना ! अपने में रहो।
(सुमन)
One Response
नियति का तात्पर्य जीव के द्वारा बांधे गए कर्म उत्कर्षण या अपकर्षण तो सम्भव है पर संक्रमण होना सम्भव नही है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है बचपन और वृद्धावस्था की शक्तियां अलग अलग होती है। अतः अपनी इन्द़ियों की शक्ति पर ताक झांक करना उचित नहीं है बल्कि अपने में यानी आत्मा में रहो।