निर्जरा

भक्ति आदि से वे पाप कर्म कटते हैं जो सुगति/संसारी वैभव आदि में अवरोधक हैं ।
व्रतादि से वे, जो मोक्षमार्ग में बाधक हैं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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  1. निर्जरा- – जिस प्रकार आम आदि फल पककर वृक्ष से पृथक् हो जाता है उसी प्रकार आत्मा को भला बुरा फल देकर कर्मों का झड़ जाना निर्जरा है। यह भी दो प्रकार होते हैं प़थम सविपाक और दूसरा अविपाक।
    अतः यह कथन सत्य है कि भक्ति आदि से पाप कर्म कटते हैं जो सुगति, संसार और वैभव आदि में अवरोधक है। व़तादि से वे जो मोक्ष मार्ग में बाधक हैं। मोक्ष मार्ग के लिए अणुव्रत और महाव़त धारण करना होता है।

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