निर्विचिकित्सा
गुणों की ओर दृष्टि चली जाने से फिर इस शरीर के प्रति घृणा नहीं होती है,
गुण क्या हैं ?
सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ही सच्चे गुण हैं ।
यह तीन गुण दिखते नहीं, परंतु उन के माध्यम से पवित्रता आ जाती है ।
उन गुणों की ओर दृष्टि जाना ही निर्विचिकित्सा है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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निर्विचिकित्सा का तात्पर्य रत्नत्रय से पवित्र है ऐसे मुनि राजों के मलिन शरीर को देखकर घृणा नहीं करना और उनके गुणों के प्रति प्रीति रखना यह सम्यग्दर्शन का निर्विचिकित्सा अंग है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने जो विवेचना बताई गई है वह पूर्ण सत्य है।