शरीर भी परिग्रह है तभी तो (तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय-4/गाथा-21,22) देवों की समृद्धि ऊपर-ऊपर के स्वर्गों में अधिक-अधिक पर शरीरों की अवगाहना/ परिग्रह कम-कम होती जाती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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8 Responses
परिग़ह का मतलब यह मेरा है एवं मैं इसका स्वामी हूं। मुनि महाराज का कथन पूर्ण सत्य है कि शरीर भी परिग़ह है। अतः जीवन में कभी भी किसी प्रकार का परिग़ह अपना नहीं मानना चाहिए। जो अपनी आत्मा को समझता है, वही अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।
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परिग़ह का मतलब यह मेरा है एवं मैं इसका स्वामी हूं। मुनि महाराज का कथन पूर्ण सत्य है कि शरीर भी परिग़ह है। अतः जीवन में कभी भी किसी प्रकार का परिग़ह अपना नहीं मानना चाहिए। जो अपनी आत्मा को समझता है, वही अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।
Lekin jab upar-upar ke swargon me parigrah adhik-adhik hota hai, to shareer ke prati aasakti kam kyon hoti hai?
ऊपर के स्वर्गों परिग्रह अधिक नहीं, समृद्धि अधिक होती है।
परिग्रह तो कम से कम होती जाती है।
Okay.
“समृद्धि अधिक” se kya matlab hai?
समृद्धि अधिक = अधिक वैभव, बड़े विमान, ज्यादा शक्ति आदि।
“अधिक वैभव” kya “परिग्रह” me nahi aayenge ?
परिग्रह का सम्बन्ध मूर्छा से है और मूर्छा कषायों की तीव्रता से होती है।
देवों में ऊपर-ऊपर कषायें कम-कम सो मूर्छा/ परिग्रह/ शरीर की अवगाहना कम-कम।