पाप पुण्य
इस युग में पाप ज्यादा या पुण्य ?
ज्यादा कैसे ??
उत्तर…
अंधे ज्यादा या दोनों आँखों से देखने वाले ?
अपाहिज कितने ? स्वस्थ कितने ?
मुनि श्री सुधासागर जी
(यहाँ आकर हम पुण्य से ज़्यादा पाप करते हैं)
इस युग में पाप ज्यादा या पुण्य ?
ज्यादा कैसे ??
उत्तर…
अंधे ज्यादा या दोनों आँखों से देखने वाले ?
अपाहिज कितने ? स्वस्थ कितने ?
मुनि श्री सुधासागर जी
(यहाँ आकर हम पुण्य से ज़्यादा पाप करते हैं)
One Response
जो आत्मा को शुभ से बचाए वह पाप है अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है। हिंसा,झूठ, चोरी,कुशील और परिग़ह ये सब पांच पाप है। पुण्य-जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसे कहते हैं अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि इस युग में पाप ज्यादा हो रहे हैं जबकि पुण्य ज्यादा कैसे हो सकता है। जीवन में दोनों आंखों से देखना चाहिए कि पुण्य कितना करते हैं और पाप कितना करते हैं। अतः जीवन में पाप को काटने का प्रयास करना चाहिए ताकि पुण्य मिल सकता है और पुण्य को त्याग भी करना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।