पूजा को पहले रखा, स्वाध्याय को बाद में । पूजा करने से राम जैसी प्रगति, स्वाध्याय करने से रावण जैसी परिणति भी हो सकती है, अगर बिना पूजा के की तो । पूजा में पूज्य का गुणगान ही, स्वाध्याय में अच्छे के साथ-साथ बुरे (नरकादि) का भी वर्णन ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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