3 प्रकार की बुद्धि—
1) सात्विक – करनी/अकरनी, पाप/पुण्य का भेद करे।
2) तामसिक – अधर्म को धर्म, अकर्त्तव्य को कर्त्तव्य माने।
3) राजसिक – (अपने मद में) सही/गलत का भेद नहीं कर पाये।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Share this on...
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि बुद्धि तीन प्रकार की होती है।
सात्विक इसमें करनी अकरनी पाप पुण्य का भेद करता है।
तामसिक में अधर्म को धर्म एवं अकर्त्तव्य को कर्तव्य मानता है।
जबकि राजसिक यानी अपने मद या अंहकार में सही या ग़लत का भेद नहीं कर पाता है।
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि बुद्धि तीन प्रकार की होती है।
सात्विक इसमें करनी अकरनी पाप पुण्य का भेद करता है।
तामसिक में अधर्म को धर्म एवं अकर्त्तव्य को कर्तव्य मानता है।
जबकि राजसिक यानी अपने मद या अंहकार में सही या ग़लत का भेद नहीं कर पाता है।