भ्रम
स्पर्श, रस, गंध और वर्ण पुदगल में हैं और आत्मा उसे आत्मसात कर अपने में मान रही है !
(खुद को शरीर मान बैठी है)
मुनि श्री सुधासागर जी
स्पर्श, रस, गंध और वर्ण पुदगल में हैं और आत्मा उसे आत्मसात कर अपने में मान रही है !
(खुद को शरीर मान बैठी है)
मुनि श्री सुधासागर जी