भगवान की माँ भी भगवान को दीक्षा लेने से रोकती है, पर यह मिथ्यात्व नहीं ?
क्योंकि वे इस मार्ग को गलत नहीं कह रहीं, मोह की परिणति है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मोह के उदय में मिथात्व प़कट होता है। इसमें राग द्वेष पैदा होता है जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है कि वे(भगवान की माँ) मार्ग को ग़लत नहीं कह रहीं हैं, लेकिन यह मोह की परिणति है। जीवन में मोह यानी राग द्वेष को समाप्त करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मोह के उदय में मिथात्व प़कट होता है। इसमें राग द्वेष पैदा होता है जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है कि वे(भगवान की माँ) मार्ग को ग़लत नहीं कह रहीं हैं, लेकिन यह मोह की परिणति है। जीवन में मोह यानी राग द्वेष को समाप्त करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।