यथार्थ स्वरूप
जैसे भगवान, वैसा मैं – अभिमान आयेगा, प्रगति का भाव नहीं होगा ।
जैसी चींटी, वैसा मैं – हीनता का भाव आयेगा ।
“जैसा मैं, वैसा मैं”…क्यों ना कहें !
भगवान बनने के काम करें, चींटी बनने वाले कामों से बचें ।
चिंतन
जैसे भगवान, वैसा मैं – अभिमान आयेगा, प्रगति का भाव नहीं होगा ।
जैसी चींटी, वैसा मैं – हीनता का भाव आयेगा ।
“जैसा मैं, वैसा मैं”…क्यों ना कहें !
भगवान बनने के काम करें, चींटी बनने वाले कामों से बचें ।
चिंतन
M | T | W | T | F | S | S |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 |
22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
29 | 30 | 31 |
One Response
यह कथन सत्य है कि आपने अपने स्वरुप को भगवान् माना तो अभिमान आ जावेगा ,इसमे प़गति का भाव नहीं हो सकता है।
आपने आपको चींटी के समान विचार किया तो हीनता का आयेगा।
आपने अपने यथार्थ स्वरुप को समझ लेना चाहिए कि मैं आत्मा हूं तो आत्मा से परमात्मा बनने का प़यास करना चाहिए तभी कल्याण हो सकता है।
अतः चींटी बनाने वाले भावो से बचना चाहिए तभी कल्याण हो सकता है।