राग सामने वाले को नष्ट करके भी अपना लाभ कर लेगा ।
वात्सल्य में दोनों के कल्याण का भाव ।
मुनि श्री सुधासागर जी
मोह में दोनों का अकल्याण ।
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राग और मोह के बंधन के कारण आत्मा के स्वरुप को पहचानने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण मोक्ष मार्ग के रास्ते पर नहीं चल सकते हैं।
राग—-इष्ट पदार्थो में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होता है।अतः राग सामने वाले को नष्ट करके अपना लाभ कर लेता है।
मोह—-जिस कर्म के उदय से हित-अहित के विवेक से रहित होता है, जिसके कारण दोनो का अकल्याण होता है।
वात्यसल में दोनो के कल्याण का भाव रहता है।
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राग और मोह के बंधन के कारण आत्मा के स्वरुप को पहचानने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण मोक्ष मार्ग के रास्ते पर नहीं चल सकते हैं।
राग—-इष्ट पदार्थो में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होता है।अतः राग सामने वाले को नष्ट करके अपना लाभ कर लेता है।
मोह—-जिस कर्म के उदय से हित-अहित के विवेक से रहित होता है, जिसके कारण दोनो का अकल्याण होता है।
वात्यसल में दोनो के कल्याण का भाव रहता है।