विग्रह गति

विग्रह गति में सुख-दु:ख का वेदन नहीं होता क्योंकि उसमें नोकर्म नहीं रहता है ।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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One Response

  1. विग़ह गति का अर्थ शरीर पूर्व भव के शरीर को छोड़कर दूसरे नवीन शरीर को ग़हण करने के लिए गमन करता है।
    नो कर्म का तात्पर्य कर्म के उदय से प्राप्त होने वाला औदारिक आदि शरीर जो जीव के सुख दुःख में निमित्त बनता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि विग़ह गति में सुख दुःख का वेदन नहीं होता है, क्योंकि उसमें नोकर्म नहीं रहता है।

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