विनय = वि + नय = विशेष रूप से ले जाने वाला नय (यथार्थ की ओर) ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय तप कहलाता था अथवा रत्नत्रय को धारण करने वाले पुरुषों के प़ति नम़ता धारण करना विनय कहते हैं।अतः विनय जीवन में धारण करता है वही जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।
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पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय तप कहलाता था अथवा रत्नत्रय को धारण करने वाले पुरुषों के प़ति नम़ता धारण करना विनय कहते हैं।अतः विनय जीवन में धारण करता है वही जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।