व्रती को शल्य
व्रती को 3 शल्य (माया, मिथ्या, निदान) नहीं होतीं, बाहुबली जी को भी नहीं थीं।
पर शल्य इन तीन के अलावा भी बहुत प्रकार की होती हैं जैसे व्रती बुरा बोलना नहीं चाहता पर यदा-कदा निकल जाता है, जिसको वे बुरा मानकर प्रायश्चित/अफ़सोस करते हैं, पर उनका गुणस्थान नहीं गिरता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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शल्य पीड़ा देने वाली वस्तु है, जैसे शरीर में कांटा चुभने पर पीड़ा होती है।
व़ती को शल्य से बचने के लिए अणुव्रत एवं महाव़त का पालन करना अनिवार्य है, ताकि जीवन में शल्य नही आवेगी।